EARTH'S HEALTH AND THE MEAT
"क्या ब्रह्म ने इस धरती को महज़ मानव के लिए ही बनाया था?"
पृथ्वी ब्रह्माण्ड का प्राकृतिक उत्पाद है, अतः इस धरती का प्रत्येक जीवन समान महत्व रखता है । परन्तु विकास की प्रक्रियाओं के फलस्वरूप मानव पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान और शक्तिशाली जीव उभर कर आया जो आदिकाल से इस धरती के समस्त जीवों पर अपना प्रभुत्व बनाये हुए है । आदिकाल से मानव का प्रमुख भोजन मांस रहा है, क्योंकि यह स्वादिष्ट और शक्तिवर्धक होता है । परन्तु आधुनिकीकरण के फलस्वरूप मानव का व्यवहार जीवों के प्रति क्रूर होता गया जिसका प्रमुख कारण अधिक से अधिक भौतिक सुख प्राप्त करने की प्रवृत्ति है । अतः प्रतिक्रिया स्वरुप वर्तमान समय में अहिंसक दृष्टिकोण का विकास हुआ है तथा मानव के साथ-साथ जीवन के अधिकार की बात भी उठने लगी है ।
सवाल यह है कि क्या मांस मानव भोजन का सबसे महत्वपूर्ण अंग है? क्या इसके बिना स्वस्थ नहीं रहा जा सकता? असल में नवीन शोधों के द्वारा यह प्रमाणित हुआ है कि शाकाहार, मांसाहार की तुलना में अधिक स्वास्थ्यवर्धक है । मांसाहार अनेक असाध्य रोगों का कारण बनता है जिनमे कैंसर सबसे अधिक महत्वपूर्ण है । मांसाहारियों का विचार है कि पारिस्थितकी संतुलन के लिए जीवों की संख्या पर नियन्त्रण आवश्यक है इसलिए मांसाहार अति आवश्यक है परन्तु पारिस्थितकी असंतुलन में मानवीय संख्या अन्य जीवों की संख्या से कहीं अधिक भूमिका निभा रही है । यदि वर्तमान में विश्व की सम्पूर्ण आबादी मांस खाना बंद कर दे तो विश्व की कुल ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन का लगभग 14.5% से 15.6% तक कम हो जायेगा । अतः वर्तमान परिस्थिति के अनुसार जैव विविधता को बनाये रखने के लिए शाकाहार बेहद महत्वपूर्ण है ।
मांस उत्पादन से सम्बंधित तथ्य
- तुलनात्मक रूप से 500 ग्राम गोमांस का उत्पादन 200 वर्ग फुट वर्षावनों के विनाश का द्दोतक होता है ।
- कॉर्नेल यूनिवर्सिटी ने यह पाया है कि एक कैलोरी ऊर्जा गोमांस से प्राप्त करने के लिए 40 कैलोरी जैव ईंधन की आवश्यकता होती है जबकि अनाज से वही ऊर्जा प्राप्त करने के लिए 2.2 कैलोरी जैव ईंधन लगता है ।
- यदि कोई मांसाहारी व्यक्ति महज़ आधा किलो गोमांस का त्याग करे तो उतना जल बच जाएगा, जितने में वह छः माह तक नहा सकता है ।
- मांस उत्पादन के लिए जानवरों को मक्का और सोयाबीन खिलाया जाता है जिस कारण सोयाबीन के उत्पादन में पिछले 40 वर्षों में 500 गुने से अधिक वृद्धि हुई है इस कारण विश्व के अनेक क्षेत्रों खासकर दक्षिणी अमेरिका के अमेजन बेसिन के वनों का अप्रत्याशित विनाश हुआ है ।

- मांस का भोग करने वाले व्यक्ति को शाकाहारी व्यक्ति की तुलना में प्रति दिन अधिक जल की आवश्यकता होती है । जैसा कि पृथ्वी पर पीने योग्य जल का प्रतिशत 2.5% से भी कम है तथा मानवीय आबादी 8 अरब पहुंच चुकी है अतः शाकाहार के द्वारा प्रति व्यक्ति जल उपभोग में कमी लाई जा सकती है जिससे इस पृथ्वी के सबसे महत्वपूर्ण संसाधन 'जल' का संरक्षण किया जा सकता है ।

शाकाहार में समस्या
पृथ्वी तल के समस्त क्षेत्र समान नहीं हैं । जलवायु एवं उच्चावच सम्बन्धी भिन्नता के कारण कुछ दुरूह क्षेत्रों में शाकाहार का समर्थन तार्किक नहीं हो सकता । पिछले एक दशक में शाकाहारी जनसँख्या में 160% की वृद्धि हुई है जिस कारण ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड तथा विश्व के अनेक देश शाक-सब्ज़ी की किल्लत से जूझ रहे हैं । शाकाहार के प्रसार के कारण पिछले कुछ वर्षों में खाद्यान और फलों की पूर्ती में कमी आई है । उदाहरणस्वरूप एवोकैडो फल की मांग में वृद्धि के चलते इस फल की तरलता में कमी हुई जिस कारण केन्या की सरकार ने इस फल के निर्यात को प्रतिबन्धित कर दिया है ।
लेखक का मत― शाकाहार का रास्ता आसान नहीं है, इसमें अनेक बाधायें हैं, जिसमें खाद्यान की कमी के साथ-साथ सांस्कृतिक पहलू भी शामिल हैं । सम्पूर्ण पृथ्वी पर शाकाहार का विकास कर पाना असंभव है परन्तु अधिकांश आबादी के क्षेत्रों में इसका विकास किया जा सकता है । सुखी, अहिंसक एवं दयालु वातावरण जिसमे उमंगों की शीतल बयार हो, ऐसा भविष्य तभी संभव है जब हम इस धरती के प्रत्येक जीवन का सम्मान कर सकें, इसे प्राप्त करने की दिशा में शाकाहार एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध हो सकता है ।
References
“A vegan diet is probably the single biggest way to reduce your impact on planet Earth, not just greenhouse gases, but global acidification, eutrophication, land use and water use,” said Joseph Poore(university of oxford, department of zoology)
yes brother your point of view is almost right ����
ReplyDeletebut non vegetarian are huge mass of body
ReplyDeletehow manage vegetarian food for them ?
Absolutely right..
ReplyDelete