GEOGRAPHY OF BEAUTY
सुंदरता एक जटिल अवधारणा है क्योंकि यह सापेक्ष(relative) होती है । कौन कितना सुंदर है ? साधारणतः इस बात का निर्णय तुलनात्मक रूप में लिया जाता है । भौगोलिक वातावरण का भी इस पर स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । जलवायु सर्वाधिक महत्वपूर्ण भौगोलिक कारक है जो शारीरिक सुंदरता को सर्वाधिक नियंत्रित करती है ।
जैसा कि हम जानते हैं उच्च अक्षांशों (यूरोप) के लोग भारतीयों से अधिक गोरे, अच्छी शारीरिक संरचना तथा खूबसूरत आंखों वाले होते हैं । अगर भारत का भी प्रादेशिक अध्ययन किया जाय तो उत्तर भारत में सर्वाधिक खूबसूरत (nordic) लोग रहते हैं (जो कि उच्च अक्षांशों से प्रवसित हुए) और यहीं से उनका पलायन भारत के अन्य राज्यों में हुआ है ।
यदि इस लिहाज़ से देखा जाय तो किसी स्थान का कोई व्यक्ति उस स्थान के सापेक्ष सुंदर या कम सुंदर हो सकता और है । तथापि दूसरे स्थान में रहने वाले लोगों की तुलना में वह (सुंदर या कम सुंदर व्यक्ति), सुंदर या कुरुप कहा जा सकता है । उदाहरण के तौर पर उत्तरप्रदेश का एक साधारण सुंदर व्यक्ति उत्तर पूर्वी राज्यों में पलायन करने के उपरांत स्वयं की सुंदरता में वृद्धि की अनुभूति कर सकता है । वहीं एक सुदूर दक्षिण का कोई साधारण सुंदर व्यक्ति उत्तर भारत खासकर उत्तर-पश्चिम में पलायान करने के उपरांत शारीरक सुंदरता के संदर्भ में असहज हो सकता है ।
HYPOTHESIS
सूत्र से स्पष्ट होता है कि सापेक्ष सुंदरता उत्तरी गोलार्द्ध में शीतोष्ण कटिबंध से ऊष्ण कटिबंध की ओर जाने पर अक्षांशीय दूरी के अनुक्रमानुपाती(directlyproportional) तथा ऊष्ण से शीतोष्ण कटिबंध की ओर जाने पर बीच की कोणीय दूरी के व्युत्क्रमानुपाती(inverselyproportional) होती है । जहां C एक अज्ञात नियतांक है । (where C is an unknown constant.)
अलबत्ता(however) यह सूत्र अत्यधिक साधारण है । ज्ञातव्य है कि अक्षांश(latitude) के साथ-साथ कुछ सीमा तक देशान्तर(longitude) का प्रभाव भी दृष्टिगत होता है । महाद्वीपों खासकर एशिया में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर जाने पर शारीरिक सुंदरता में कुछ क्षय दृष्टिगत होता है ।
CONCLUSION
हालांकि यह विचार चरम परिस्थितियों पर लागू नहीं होता .. साधरणतः संसार का लगभग हर व्यक्ति सुंदर होता है क्योंकि सापेक्षतः वह किसी न किसी से अधिक सुंदर होता है तो किसी से कम सुंदर होता है । शीत जलवायु से ऊष्ण तथा ऊष्ण से शीत कटिबंधों में पलायन करने वाले इन अक्षांशों के लोग मनोवैज्ञानिक दृष्टि से क्रमशः अधिक सुंदर तथा असहज महसूस कर सकते हैं ।
लेखक का मत–प्रकृति ने मनुष्य को शारीरिक सुंदरता के संदर्भ में स्प्ष्ट अंतर दिए जाने के बावजूद सभी मनुष्यों को एक मन और एक आत्मा में पिरोया है । अतः सकल मानवीय सुंदरता और उसे बढ़ाना शत-प्रतिशत मनुष्य के हाथ में ही है । प्रेम एक ऐसी ही शक्तिशाली भावना है जो किसी को भी खूबसूरत बना सकती है । कृतज्ञता प्रेम को बढ़ाती है और प्रेम खूबसूरती को । जब मानव प्रेम में होता है तब शारीरिक सुंदरता से जुड़े नियम, संभावनाएं एवं विचार सब बेमतलब हो जाते हैं ।
जैसा कि हम जानते हैं उच्च अक्षांशों (यूरोप) के लोग भारतीयों से अधिक गोरे, अच्छी शारीरिक संरचना तथा खूबसूरत आंखों वाले होते हैं । अगर भारत का भी प्रादेशिक अध्ययन किया जाय तो उत्तर भारत में सर्वाधिक खूबसूरत (nordic) लोग रहते हैं (जो कि उच्च अक्षांशों से प्रवसित हुए) और यहीं से उनका पलायन भारत के अन्य राज्यों में हुआ है ।
यदि इस लिहाज़ से देखा जाय तो किसी स्थान का कोई व्यक्ति उस स्थान के सापेक्ष सुंदर या कम सुंदर हो सकता और है । तथापि दूसरे स्थान में रहने वाले लोगों की तुलना में वह (सुंदर या कम सुंदर व्यक्ति), सुंदर या कुरुप कहा जा सकता है । उदाहरण के तौर पर उत्तरप्रदेश का एक साधारण सुंदर व्यक्ति उत्तर पूर्वी राज्यों में पलायन करने के उपरांत स्वयं की सुंदरता में वृद्धि की अनुभूति कर सकता है । वहीं एक सुदूर दक्षिण का कोई साधारण सुंदर व्यक्ति उत्तर भारत खासकर उत्तर-पश्चिम में पलायान करने के उपरांत शारीरक सुंदरता के संदर्भ में असहज हो सकता है ।
HYPOTHESIS
IN NORTH HEMISPHERE
*(NEGLECTING LONGITUDES)
●
Br(te) ∝ Da(s)
Br(te) = C×Da(s)
Br = relative beauty
te= from temperate to tropical
Da(s) = angular distance (southward)
●
Br(tro) ∝ 1/Da(n)
Br(tro) = C/Da(n)
tro = from tropical to temperate
Da(n) = angular distance (northward)
अलबत्ता(however) यह सूत्र अत्यधिक साधारण है । ज्ञातव्य है कि अक्षांश(latitude) के साथ-साथ कुछ सीमा तक देशान्तर(longitude) का प्रभाव भी दृष्टिगत होता है । महाद्वीपों खासकर एशिया में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर जाने पर शारीरिक सुंदरता में कुछ क्षय दृष्टिगत होता है ।
CONCLUSION
हालांकि यह विचार चरम परिस्थितियों पर लागू नहीं होता .. साधरणतः संसार का लगभग हर व्यक्ति सुंदर होता है क्योंकि सापेक्षतः वह किसी न किसी से अधिक सुंदर होता है तो किसी से कम सुंदर होता है । शीत जलवायु से ऊष्ण तथा ऊष्ण से शीत कटिबंधों में पलायन करने वाले इन अक्षांशों के लोग मनोवैज्ञानिक दृष्टि से क्रमशः अधिक सुंदर तथा असहज महसूस कर सकते हैं ।
लेखक का मत–प्रकृति ने मनुष्य को शारीरिक सुंदरता के संदर्भ में स्प्ष्ट अंतर दिए जाने के बावजूद सभी मनुष्यों को एक मन और एक आत्मा में पिरोया है । अतः सकल मानवीय सुंदरता और उसे बढ़ाना शत-प्रतिशत मनुष्य के हाथ में ही है । प्रेम एक ऐसी ही शक्तिशाली भावना है जो किसी को भी खूबसूरत बना सकती है । कृतज्ञता प्रेम को बढ़ाती है और प्रेम खूबसूरती को । जब मानव प्रेम में होता है तब शारीरिक सुंदरता से जुड़े नियम, संभावनाएं एवं विचार सब बेमतलब हो जाते हैं ।
Wow! What a explanation!
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