The CAA: Constitutional Explanation
“राज्य, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समता से या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।”
विधि के समक्ष समता का अधिकार
(अनुच्छेद 14)
संविधान के इस अनुच्छेद को पढ़ कर कोई भी यह कह सकता है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम असंवैधानिक है, लेकिन संविधान के मामले में इतनी आसानी के साथ किसी भी निर्णय पर पहुचना बचकाना ही कहा जाएगा।
असल में अनुच्छेद 14 संकीर्ण न होकर अति व्यापक है। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार संक्षेप में ― “समान संरक्षण का अर्थ समान परिस्थितियों में समान व्यवहार से है।”
अनुच्छेद में विधि के समक्ष समानता को प्रमुख दो आधार प्रदान किये गए हैं―
(अ) ‛The classification is based upon intelligible differentia that distinguishes persons or things that are grouped from others that are left out of the group’ अर्थात् अनुच्छेद स्थापित वर्गों तथा समूहों का बौद्धिक व न्यायिक वर्गीकरण करने की अनुमति देता है।
(ब) ‛The differential has a rational relation with the objective of the act’ वर्गीकरण में तार्किकता का ऐसा समावेश होना चाहिए कि वह लक्ष्य प्राप्ति की ओर उन्मुख हो।
अलबत्ता इन बिंदुओं की व्याख्या में 1973ई. में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा था कि― “Equality is a dynamic concept with many aspects and dimensions and it cannot be ‘cribbed, cabined and confined’ within the traditional and doctrinaire limits. From the positivistic point of view, equality is antithetic to arbitrariness. In fact, equality and arbitrariness are sworn enemies… Where an act is arbitrary, it is implicit that it is unequal both according to political logic and constitutional law and is therefore violative of Article 14.” समानता एक गतिशील अवधारणा है तथा मनमानी और समानता दो विरोधी विचार हैं। अर्थात् ऐसा वर्गीकरण जो मनमाना है, वह न ही राजनैतिक तर्क के अनुसार जायज कहा जा सकता है और न ही संवैधानिक विधि के अनुसार।
अब आते हैं नागरिकता संशोधन अधिनियम अर्थात् CAA पर,
कई बुद्धिजीवियों के अनुसार यह असंवैधानिक है क्योंकि यह अनुच्छेद 14 का विरोधी है। अगर हम अनुच्छेद के पहले आधार (अ) के बारे में विचार करें तो अधिनियम में शरणार्थियों का वर्गीकरण देश के आधार पर― पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान बनाम अन्य देश तथा संख्या के आधार पर― अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का है, जोकि अनुच्छेद की पहली शर्त को संतृप्त करता है।
सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या के अनुसार अगर आधार मनमाना है तो यह संविधान(अनुच्छेद 14) का उलंघन करेगा।
क्या यह आधार मनमाना है?
सवाल जायज है और सारी कवायत बस इसी बात की ही है।
इस सवाल का जवाब दूसरे आधार (ब) पर विचार करके ढूढ़ने की चेष्टा करेंगे, जो निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत प्रस्तुत है―
● चूंकि तीनों देश(पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान) एक रूप में इस्लाम को अपना राज्य धर्म मानते हैं और यहां धर्मनिरपेक्षता नहीं है।
● यहां अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मामले सामने आते हैं, इसलिए उत्पीड़न और अल्पसंख्यक, दोनों ही इस वर्गीकरण का आधार हैं।
● चूंकि नागरिकता प्रदान कर इन उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों के जीवन और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना इस वर्गीकरण का उद्देश्य है अतः यह वर्गीकरण तार्किक आधार पर भी आधार (ब) की शर्त को संतृप्त करता है।
● ऐसा पहले भी किया जा चुका है और सर्वप्रथम इस प्रकार का अधिनयम 1950 में THE IMMIGRANTS (EXPULSION FROM ASSAM) ACT के रूप में सामने आया था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पं नेहरू और और कानून मंत्री डॉ अम्बेडकर थे।
अब सवाल यह उठता है कि भारत के पड़ोसी देशों के बहुसंख्यकों को इससे क्यों वंचित रखा जा रहा है?
इसके लिए निम्नलिखित तर्क जिम्मेदार हैं―
● भारत का विभाजन शत प्रतिशत धर्म के आधार पर हुआ था। भारत ने अपनी ज़मीन का एक तिहाई हिस्सा गवां दिया था। इस रूप से देखा जाए तो भारत पहले ही मुसलमानों को अपने क्षेत्रफल का एक तिहाई भाग दे चुका है और मुसलमानों ने उसे अपनी मात्र भूमि के रूप में स्वीकारा भी है इसलिए अब उन देशों के बहुमत को भारत की नागरिकता देने का कोई अर्थ नहीं बनता है। और अगर भारत उन्हें नागरिकता देता है तो 1947 के बंटवारे का औचित्य ही समाप्त हो जाता है।
● यह नागरिकता अधिनयम धार्मिंक कारणों से प्रताड़ित हुए शरणार्थियों को नागरिकता देने की वकालत करता है। चूँकि इन मुख्य तीन देशों में धर्म निरपेक्षता नहीं है और यहाँ पर इस्लाम राज धर्म है अतः बहुसंख्यकों का धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होने का कोई तर्क नहीं बनता है।
भविष्य के प्रश्न―
● देश की अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत को देखते हुए सरकार कैसे अतिरिक्त जनसंख्या के बोझ की समस्या को सुलझाएगी?
● अगर पूरे देश में NRC संभव है तो इसे कैसे किया जाएगा?
● NRC में गैर भारतीय मुसलमानो के बारे में सरकार यह कैसे सिद्ध करेगी कि वे उक्त देश के हैं?
● अगर पड़ोसी देश अपने नागरिकों को वापस लेने से इनकार कर देते हैं तो सरकार का अगला कदम क्या होगा?
● सरकार यह कैसे सुनिश्चित करेगी कि देश के मुसलमानों को NRC के दौरान कोई समस्या न हो?
लेखक का मत― मैं कोई कानून का बहुत जानकर नहीं हूँ और अपनी समझ के अनुसार यह लेख लिख रहा हूँ। अलबत्ता अध्ययन से यह झलकता है कि यह अधिनियम न तो संविधान विरोधी है और न ही मुस्लिम विरोधी। राष्ट्रीय सुरक्षा और संपोषणीय विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दृष्टि से सरकार का निर्णय उचित महसूस होता है। हालांकि CAA और NRC का रास्ता आसान नहीं लगता है और अगर सरकार इन दोनों अधिनियमों को शांतिपूर्वक क्रियान्वित करा पाती है तो इसे भारत के राजनैतिक इतिहास की एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है।
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